Cooking Oil Price Drop 2025: खाना पकाने का तेल हुआ सस्ता – जानें नया रेट

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Cooking oil price drop

खाना पकाने का तेल हमेशा से ही हर घर की सबसे बड़ी ज़रूरत और खर्च का अहम हिस्सा रहा है। आम लोगों के किचन का बजट अधिकतर खाद्य तेल पर ही निर्भर करता है, क्योंकि यह रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाली बुनियादी चीज़ों में से एक है। पिछले कुछ वर्षों में लगातार बढ़ती महंगाई और अंतरराष्ट्रीय बाजार की उथल-पुथल ने तेल की कीमतों में तेज उछाल ला दिया था।

ऐसे में साल 2025 आम परिवारों के लिए एक बड़ी राहत लेकर आया है। सरकार और तेल कंपनियों दोनों के प्रयास से खाने के तेल की कीमतों में उल्लेखनीय गिरावट आई है। आम उपभोक्ता के लिए यह राहत बड़ी खुशखबरी है, क्योंकि अब रसोई का खर्च कुछ हद तक कम होगा और जेब पर बोझ हल्का होगा।

तेल की गिरती कीमतों से न केवल घरेलू उपभोक्ता बल्कि होटल, रेस्तरां और खाने-पीने से जुड़ा व्यवसाय भी राहत महसूस कर रहा है। आइए विस्तार से जानते हैं कि यह राहत कैसे मिली, कौन-कौन से तेल सस्ते हुए हैं और सरकार ने इसके लिए क्या कदम उठाए हैं।

Cooking Oil Price Drop

इस समय देशभर के थोक और खुदरा बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में 10 से 15 रुपये प्रति लीटर तक की कमी देखने को मिली है। सरसों तेल, रिफाइंड, सोयाबीन और सूरजमुखी तेल जैसे प्रमुख इस्तेमाल किए जाने वाले तेलों के दाम अब पहले से काफी कम हो गए हैं।

जहां पहले सरसों तेल का भाव 160 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गया था, वहीं अब यह घटकर लगभग 140 रुपये के आसपास बिक रहा है। इसी तरह सोयाबीन और सूरजमुखी तेल में भी अच्छी-खासी कमी आई है। इससे आम आदमी का खर्च सीधे तौर पर प्रभावित हो रहा है, क्योंकि तेल हर घर की अनिवार्य ज़रूरत है।

खाद्य तेलों के इस दाम में कमी का सबसे बड़ा फायदा मध्यम और निम्न वर्ग के लोगों को मिल रहा है। पहले जहां घर का बजट बिगड़ता दिख रहा था, अब उसमें कुछ हद तक संतुलन आने लगा है।

सरकार की योजनाएं और प्रयास

तेल की कीमतों में यह गिरावट किसी एक कारण से नहीं बल्कि कई नीतिगत पहल और अंतरराष्ट्रीय बाजार में सुधार का नतीजा है। सरकार की ओर से सबसे बड़ा कदम आयात शुल्क में कमी करना रहा है। कच्चे पाम ऑयल, सोयाबीन ऑयल और सूरजमुखी ऑयल पर आयात शुल्क घटाकर कीमतें नियंत्रित करने की दिशा में काम किया गया।

इसके अलावा खाद्य मंत्रालय ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के तहत गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों को सस्ता तेल उपलब्ध कराने की योजना भी चलाई है। इसमें राज्य सरकारों के सहयोग से तेल के भाव पर सब्सिडी दी जा रही है। इससे उन परिवारों को सबसे अधिक फायदा मिल रहा है, जिनकी आय सीमित है और जो रोजमर्रा की बढ़ती महंगाई से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।

सरकार ने खाद्य तेल कंपनियों से भी समझौता किया कि वे थोक में कीमतें कम करें ताकि इसका असर खुदरा बाजार तक पहुंचे। यही वजह है कि जनवरी 2025 की तुलना में अब बाजार में तेल की कीमतें स्थिर और नियंत्रित दिख रही हैं।

अंतरराष्ट्रीय बाजार का असर

भारत खाद्य तेल का बड़ा उपभोक्ता है और इसकी खपत बाजार largely आयात पर निर्भर रहती है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाम ऑयल और सोयाबीन जैसी फसलों के अच्छे उत्पादन ने कीमतों को नीचे लाने का माहौल बनाया। इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे देशों से आयात बढ़ने के कारण भारत में भी राहत मिली।

पिछले वर्षों में रूस-यूक्रेन युद्ध और वैश्विक परिदृश्य के चलते सूरजमुखी तेल की सप्लाई पर असर पड़ा था। अब स्थिति में स्थिरता आने से कीमतों में गिरावट दिख रही है। इसका सीधा फायदा भारतीय उपभोक्ता को मिल रहा है।

उपभोक्ताओं को लाभ

कीमतों में गिरावट का सबसे बड़ा लाभ उपभोक्ताओं को दैनिक खर्च में मिल रहा है। पहले जहां एक महीने में तेल पर 1500 से 2000 रुपये तक का खर्च हो जाता था, वहीं अब इसमें करीब 300-400 रुपये तक की बचत होने लगी है।

होटल, ढाबा और छोटे व्यापारी भी राहत महसूस कर रहे हैं। कड़ी प्रतिस्पर्धा वाले इस व्यवसाय में तेल की कीमतें सस्ती होने से खाने की क्वालिटी बनाए रखना और दाम नियंत्रित रखना आसान हो गया है।

आने वाले समय का अनुमान

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अंतरराष्ट्रीय बाजार स्थिर रहते हैं और सरकार की नीति यही बनी रहती है, तो तेल की कीमतें और ज्यादा नीचे आ सकती हैं। हालांकि मानसून और घरेलू उत्पादन का असर हमेशा से इस बाजार पर रहा है। इसलिए उपभोक्ताओं को सावधानी से आगे भी नजर रखनी होगी।

सरकार की कोशिश है कि घरेलू स्तर पर तिलहन उत्पादन को बढ़ावा दिया जाए ताकि आयात पर ज्यादा निर्भर न रहना पड़े। अगर यह सफल होता है, तो भविष्य में भी कीमतें स्थिर रह सकती हैं।

निष्कर्ष

इस तरह खाने के तेल की कीमतों में आई गिरावट लोगों के लिए बड़ी राहत बनकर आई है। सरकार की योजनाओं, नीति सुधार और वैश्विक बाजार की अनुकूलता ने मिलकर यह संतुलन बनाया है। अगर यही स्थिति बनी रही तो 2025 आम परिवारों के बजट के लिए एक राहतभरा साल साबित होगा।

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